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देखा है हमनें भी उन बिलखते भूखे बच्चों को औऱ नेताओ

देखा है हमनें भी उन बिलखते भूखे बच्चों को औऱ नेताओं की रोटी सिकती को,
नित नित रैन भगत से ही दकोसलाबाजी करते,न सुनते मासूम की सिसकी को,
वक़्त के साये में कुमलाहे है, मानो जमीं पर वो भी बिन बुलाये से मेहमान है,
इनकी शेख़ से आज तक तुम बचे हो,दो समय फिर सुनो इनकी शेर सी भभकी को।  काव्य-ॲंजुरी✍️ की साप्ताहिक प्रतियोगिता में आपका स्वागत है।

विषय : देखा है हमने
पंक्ति सीमा : 4
समय सीमा:25.02.2021
                9:00pm
विशेष : विषय का रचना में होना अनिवार्य नहीं है।
देखा है हमनें भी उन बिलखते भूखे बच्चों को औऱ नेताओं की रोटी सिकती को,
नित नित रैन भगत से ही दकोसलाबाजी करते,न सुनते मासूम की सिसकी को,
वक़्त के साये में कुमलाहे है, मानो जमीं पर वो भी बिन बुलाये से मेहमान है,
इनकी शेख़ से आज तक तुम बचे हो,दो समय फिर सुनो इनकी शेर सी भभकी को।  काव्य-ॲंजुरी✍️ की साप्ताहिक प्रतियोगिता में आपका स्वागत है।

विषय : देखा है हमने
पंक्ति सीमा : 4
समय सीमा:25.02.2021
                9:00pm
विशेष : विषय का रचना में होना अनिवार्य नहीं है।