ख़ामोश खरे रहते हैं , खुद से डरे डरे रहते हैं , वो लोग जो ज़माने से आंखें मिलाकर मुखातिब नहीं होते , भीड़ में वही कहीं पीछे खरे रहते हैं ।। "Danish Quasim" zamane ki reet. .