एक सच्ची मेरे बचपन की घटना , शायद पहले बी मन्नैं इसका जिकर करया था ... गाम कै लागदी कुटिया मैं एक बाबाजी थे अर उनका एक बेरा ना कित तै आया बचपन तै अनाथ मंदबुद्धि सा एक भक्त था ... उसका नाम बाबाजी बूशा बोल्या करदे ... बूशा तड़के चार बजे उठकै कुटिया की साफ सफाई करे करदा , अर बाबाजी साड्डे चार बजे उठ कै शंख फुक्या करदा ... फेर पूजा पाठ करदा ... गाम आल्यां का अलार्म बी था यो , गाम के भक्त भक्तनियां तड़के तड़क सत्संग सुणन खात्तर कुटिया मैं जाते , अर श्रद्धानुसार चढ़वा बी चढ़ाया करदे ... एक तड़के बाबाजी उठ्या ... नहा धोकै कुटिया मैं बड़या ... शंख गायब , चारों कान्नी टोह लिया कोनी पाया , बाबा का पारा हाई हो ग्या , बिजनस खतरे मैं देख कै ... रुक्का मारकै बोल्या " ओooo बूशे साले हरामी शंख कित है , जल्दी तै टोह कै दे नातै तेरे चूतड़़ां मैं तै कड्ढुंगा ... गाम का मलुका अम्ली औढ़िए कुटिया के बरांडे मैं पंखे तलै सोवै था , या सुणकै बोल्या :- बाबाजी काड्ढण की के लोड़ है औढ़िए फू़ंक दिया कर ... दबारा गुम होण की टैन्सन बी खत्म हो जागी ... 😎😎😎🤔 एक था बाबा