कोशिश की बहोत पर , मंज़िल को छू न सके पंख फैलाये बहोत मगर, उड़ान भर न सके हम चाहते थे कायनात, मुट्ठी में करना लकिन अपने ख्वाबो के टुकड़े , समेट न सके। रिश्ते बहोत थे, लफ्ज़ बहोत थे फिर भी किसी को , बया कर न सके घुट गए अंदर ही अंदर, ख्वाब हमारे की हमारे अपने उन्हे, अपना न सके। #thirdquote #careergoals #dreamsndesires #dillagi