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मुश्किल है अपना मेल प्रिये , ये रेल नहीं है खेल प

मुश्किल है अपना मेल प्रिये , ये रेल नहीं है खेल  प्रिये !-2.
तुम घुमावदार GT ￰रोड, मैं सीधा-साधा रेल प्रिये....
मुश्किल है अपना मेल प्रिये, ये रेल नहीं है खेल प्रिये....
तुम खुले हवा में सोते हो , मैं इंजन में ही रोता हु !
तुम थाली में खाना खाना खाती, मैं टिफिन  में हाथें धोता हु !!
तुम मार्सिटीज से निकले तो, मैं पैदल  लॉबी जाता हु ,
तुम ताजा भोजन करती हो ,मैं सुखी  रोटी चवाता हूँ ! 
 जज्बातों की बातों में ..... न ऐसे हमे धकेल  प्रिये .........
मुश्किल है अपना मेल प्रिये , ये रेल नहीं है खेल प्रिये!!
सपने भी मेरी सुनले पगली ,हर रात तुझे तड़पायेगी!
मैं जागूँगा सारी रात पर नींद  तुझे  न आएगी  !!
हरी , पिली पर सांत रहता हू लाल को देख घबराता हु ,
लाल के पहले जोरो से मैं लाल -लाल चिल्लाता  हू!
खींचा-तानी के चक्कर में कुशल  न हम रह पाएंगे,
ड्यूटी जब - जब लगेगी मेरी खाना तुम्ही  से बनवाएंगे!
आटा-  चावल , दाल के साथ में....दे देना तुम तेल  प्रिये ....
मुश्किल है अपना मेल प्रिये , ये रेल नहीं है खेल प्रिये!
इन सकरी पतली पटरियों पर जब दिन से रात हो जाते है .
कब तक ड्यूटी ऑफ होगी हम खुद ही समझ नहीं पाते है ,
घर को जाते जाते  काफी देर हो जाते है ,
घर में पापा ,मम्मी ,भैया ,दीदी सब सो जाते है 
खुद  खाना लेकर चारपाई पर अकेले खाते है
एक अकेला तकिया लेकर कोने में कही सो जाते है-2
मेरे अरमानो के चलते खुद से ना तुम खेल प्रिये .....
मुश्किल है अपना मेल प्रिये , ये रेल नहीं है खेल प्रिये.....
              :-  संतोष 'साग़र' मुश्किल है अपना मेल प्रिये , ये रेल नहीं है खेल  प्रिये !-2.
तुम घुमावदार GT ￰रोड, मैं सीधा-साधा रेल प्रिये....
मुश्किल है अपना मेल प्रिये, ये रेल नहीं है खेल प्रिये....
तुम खुले हवा में सोते हो , मैं इंजन में ही रोता हु !
तुम थाली में खाना खाना खाती, मैं टिफिन  में हाथें धोता हु !!
तुम मार्सिटीज से निकले तो, मैं पैदल  लॉबी जाता हु ,
तुम ताजा भोजन करती हो ,मैं सुखी  रोटी चवाता हूँ !  जज्बातों की बातों में ..... न ऐसे हमे धकेल  प्रिये .........
मुश्किल है अपना मेल प्रिये , ये रेल नहीं है खेल प्रिये!!
मुश्किल है अपना मेल प्रिये , ये रेल नहीं है खेल  प्रिये !-2.
तुम घुमावदार GT ￰रोड, मैं सीधा-साधा रेल प्रिये....
मुश्किल है अपना मेल प्रिये, ये रेल नहीं है खेल प्रिये....
तुम खुले हवा में सोते हो , मैं इंजन में ही रोता हु !
तुम थाली में खाना खाना खाती, मैं टिफिन  में हाथें धोता हु !!
तुम मार्सिटीज से निकले तो, मैं पैदल  लॉबी जाता हु ,
तुम ताजा भोजन करती हो ,मैं सुखी  रोटी चवाता हूँ ! 
 जज्बातों की बातों में ..... न ऐसे हमे धकेल  प्रिये .........
मुश्किल है अपना मेल प्रिये , ये रेल नहीं है खेल प्रिये!!
सपने भी मेरी सुनले पगली ,हर रात तुझे तड़पायेगी!
मैं जागूँगा सारी रात पर नींद  तुझे  न आएगी  !!
हरी , पिली पर सांत रहता हू लाल को देख घबराता हु ,
लाल के पहले जोरो से मैं लाल -लाल चिल्लाता  हू!
खींचा-तानी के चक्कर में कुशल  न हम रह पाएंगे,
ड्यूटी जब - जब लगेगी मेरी खाना तुम्ही  से बनवाएंगे!
आटा-  चावल , दाल के साथ में....दे देना तुम तेल  प्रिये ....
मुश्किल है अपना मेल प्रिये , ये रेल नहीं है खेल प्रिये!
इन सकरी पतली पटरियों पर जब दिन से रात हो जाते है .
कब तक ड्यूटी ऑफ होगी हम खुद ही समझ नहीं पाते है ,
घर को जाते जाते  काफी देर हो जाते है ,
घर में पापा ,मम्मी ,भैया ,दीदी सब सो जाते है 
खुद  खाना लेकर चारपाई पर अकेले खाते है
एक अकेला तकिया लेकर कोने में कही सो जाते है-2
मेरे अरमानो के चलते खुद से ना तुम खेल प्रिये .....
मुश्किल है अपना मेल प्रिये , ये रेल नहीं है खेल प्रिये.....
              :-  संतोष 'साग़र' मुश्किल है अपना मेल प्रिये , ये रेल नहीं है खेल  प्रिये !-2.
तुम घुमावदार GT ￰रोड, मैं सीधा-साधा रेल प्रिये....
मुश्किल है अपना मेल प्रिये, ये रेल नहीं है खेल प्रिये....
तुम खुले हवा में सोते हो , मैं इंजन में ही रोता हु !
तुम थाली में खाना खाना खाती, मैं टिफिन  में हाथें धोता हु !!
तुम मार्सिटीज से निकले तो, मैं पैदल  लॉबी जाता हु ,
तुम ताजा भोजन करती हो ,मैं सुखी  रोटी चवाता हूँ !  जज्बातों की बातों में ..... न ऐसे हमे धकेल  प्रिये .........
मुश्किल है अपना मेल प्रिये , ये रेल नहीं है खेल प्रिये!!