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आज कल मैं दिन में चांद ढूंढता हूं। रात में सूरज की

आज कल मैं दिन में चांद ढूंढता हूं।
रात में सूरज की तालाश करता फिरता 
माना कि यह मुमकिन नहीं है।
तब भी इसलिए की इस हंसते हुए, 
चेहरे के पीछे का गम दिखाने को डरता हूं।
कहीं किसी का मुस्कुराहट से भरोसा न उठ जाए।

©मुसाफिर
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