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अपने पर जरा ग़ौर हो तो काम अच्छा है, दिल के तंज़ के

अपने पर जरा ग़ौर हो तो काम अच्छा है,
दिल के तंज़ के सिवा कहीं अपने पे हो ज़ोर तो अच्छा है ।
 चंद मिसरे है शान में नाकाम-ए-गुस्ताख़ी की,
चर्चा हो कुछ और तो अच्छा है ।


जल भी चुके परवाने हो भी चुकी रुसवाई,
अब ख़ाक उड़ाने को बैठे हैं तमाशाही,
तारों की ज़िया दिल में इक आग लगाती है
आराम से रातों को सोते नहीं सौदाई 
अब ख़ाक उड़ाने को....X 2
बैठे है तमाशाही ।
जल भी चुके परवाने, हो भी चुकी रुसवाई ।
रातों की उदासी में ख़ामोश है दिल मेरा,
बेहिस्स हैं तमन्नाएं नींद आये के मौत आये 
(सबकी तरफ से मेरे लिए और मेरी तरफ से सबके लिए ये)
अब दिल को किसी करवट आराम नहीं मिलता
इक उम्र का रोना है दो दिन की शनासाई ।
 ये महफ़िल के मेहमान्नवाज़ों के लिए जिन्हें कहानी समझ नहीं आती और उपमा में शेर हैं। तंज़ तो ग़ालिबन अखबारों के घिसे पिटे कहने को ग़ालिब बैठे हैं भर भी यहाँ भी । मगर ऐ मेरे अल्लाह जाने अक़्ल का ताला खुलता नहीं और ये बातों के इलावा उन सबको आखिर कुछ और लिखने को मिलता नहीं । चलो याद रहेगा कि मेरी किरदारी कुछ काम तो आयी। अजी साफ़गोई मैन छोड़िये बेअकलों को भी तो हँसी आयी ।

देख ले रीत और प्रीत यहाँ की ऐ दोस्त तेरे सिवा ये बात किसी के भेजे में न आई । जो कर चुके है तालाब-ए-ज़मज़म को काला इस जगह पे शायद इसलिए ही इस
अपने पर जरा ग़ौर हो तो काम अच्छा है,
दिल के तंज़ के सिवा कहीं अपने पे हो ज़ोर तो अच्छा है ।
 चंद मिसरे है शान में नाकाम-ए-गुस्ताख़ी की,
चर्चा हो कुछ और तो अच्छा है ।


जल भी चुके परवाने हो भी चुकी रुसवाई,
अब ख़ाक उड़ाने को बैठे हैं तमाशाही,
तारों की ज़िया दिल में इक आग लगाती है
आराम से रातों को सोते नहीं सौदाई 
अब ख़ाक उड़ाने को....X 2
बैठे है तमाशाही ।
जल भी चुके परवाने, हो भी चुकी रुसवाई ।
रातों की उदासी में ख़ामोश है दिल मेरा,
बेहिस्स हैं तमन्नाएं नींद आये के मौत आये 
(सबकी तरफ से मेरे लिए और मेरी तरफ से सबके लिए ये)
अब दिल को किसी करवट आराम नहीं मिलता
इक उम्र का रोना है दो दिन की शनासाई ।
 ये महफ़िल के मेहमान्नवाज़ों के लिए जिन्हें कहानी समझ नहीं आती और उपमा में शेर हैं। तंज़ तो ग़ालिबन अखबारों के घिसे पिटे कहने को ग़ालिब बैठे हैं भर भी यहाँ भी । मगर ऐ मेरे अल्लाह जाने अक़्ल का ताला खुलता नहीं और ये बातों के इलावा उन सबको आखिर कुछ और लिखने को मिलता नहीं । चलो याद रहेगा कि मेरी किरदारी कुछ काम तो आयी। अजी साफ़गोई मैन छोड़िये बेअकलों को भी तो हँसी आयी ।

देख ले रीत और प्रीत यहाँ की ऐ दोस्त तेरे सिवा ये बात किसी के भेजे में न आई । जो कर चुके है तालाब-ए-ज़मज़म को काला इस जगह पे शायद इसलिए ही इस
madhav1592369316404

Madhav Jha

New Creator