मैं एक मासूम बच्ची थी, मेरी आयु भी कच्ची थी, क्यों जलाया मेरा बचपन, मैं ऐसे ही तो अच्छी थी। मैं तेरी बेटी सयानी थी, तेरी हर बात मानी थी, मुझे क्यों दी सज़ा तूने, मैंने करी क्या हानि थी। मेरा वो बेढंग शर्माना, तेरी हर बात पर हंसना, तुझे क्यों रास ना आया, कभी मुझको तू समझाना। मैं पूछूँगी हर एक कारण, मुझे करना है निवारण, मुझे लड़ना होगा जग से, अभी ज़िंदा हैं कई रावण। बालिका वधु!!!