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खोज में एक बेहतर कल की, निकली कई सवारी। न जी पाये

खोज में एक बेहतर कल की, निकली कई सवारी।
न जी पाये आज को,और न कल की कोई तैयारी।

आज न लौटा कभी, न कल ही आ पाया।
हर रोज़ सोचता मन, क्या खोया क्या पाया।

कल जीयेंगे जी भर के, ये सोच के कमाया।
आज को तडपाकर, कल का स्वप्न सजाया।

अफसोस! वो कल,आज तक, न कभी हमें मिल पाया।
जिसके लिए हर आज को बड़ी शिद्दत से था तड़पाया।

जी भर के जियो हर आज को, कल का समझकर।
जिंदगी दो-चार दिन की नही, जियो आजकल समझकर।

©Anand Prakash Nautiyal tnautiyal
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