शहर से गाँव जोड़ती सड़कों पर शहर से शहर दौड़ती सड़कों पर तेज रफ्तार से दौड़ती बसें आटो, टैक्सी, दुपहिया, चार पहिया वाहन । अचानक..... कहीं थम जाती है रफ्तार और हो जाते हैं एक आमजनों में खासजन खासजनो में आमजन अपने गंतव्यों की ओर दौड़ते । मैं देख नहीं पाता चेहरा । पर ...... अचानक थम जाने पर जब देखता हूँ सबका एक सा होता है कुछ व्यग्र-बेचैन सा । सोंचने लगता हूँ क्या ये मंजर बदलेगा कभी ? कब तक ये पदचाप और भागदौड़ का शोर गूंजता रहेगा संसद में ? क्या खत्म होगी कभी अधूरी दौड़ मेरे देश की और पकड़ी जा सकेगी रफ्तार । या..... यूँ ही जाम, यूँ ही घिसट, यूँ ही लगा रहेगा एक डर हर वक़्त इन सड़कों पर रेंगते रहने का । हर नये दिन ।