मैं भी जख्मों पर मरहम लगा सकता था यार तुझे भी नींद में से जगा सकता था तुझे चाहने के सिवा कुछ किया भी नहीं अगर चाहता तो अच्छा कमा सकता था कैसे सोते तुम उसका घर जलाकर सुकून से जैसे वो भागा था तुमको भगा सकता था समझ आ चुका था उसको दर्द बेघर होने का केवरना वो तो था जो बस्तियां जला सकता था उसका नंबर पहले आया दिल्ली में बैठने का जो भाषण में मजहबी आग लगा सकता था #jakhm #bhashan