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जाँ पिर अंदर तां धन बाहर।। जाँ पिर बाहर तां धन माह

जाँ पिर अंदर तां धन बाहर।। जाँ पिर बाहर तां धन माहर।। बिन नावै बहु फेर फिराहे।। सतगुर सँग दिखाया ज़ाहर।।जन नानक सच्चे सच समाहर।।

अर्थ:- जब परम् प्रकाश रूपी प्रभु सहज गुफा में थे यानी हमे योगिक कला नहीं मालूम थी व प्रकाश रूपी परमेश्वर गुप्त था तब नाम रूपी प्रकाश धन बाहर होता है।। और जब सर्वत्र खाली स्पेस में परम् प्रकाश रूपी परमेश्वर दिखने लगते हैं गुर यानी योगिक कला द्वारा तब नाम रूपी धन को नेत्रो द्वारा देखने का मन माहर यानी मास्टर हो जाता है।। बिना नाम=प्रकाश धन के बहुत योनियों में मन को जाना पड़ता है।।। जब हमें साधु का सच्चा सँग हुआ तो हमे जाहरा जहूर मालिक नेत्रो के साहमने दिखने लगा।। ऐसे हरिजनों की संगत द्वारा सच्चे के संग मन सच्चा हो कर समा  जाता है ऐसे सच्चे प्रकाश में।। ,"जोति जोत रली सम्पूर्ण थीया राम।।"

©Biikrmjet Sing
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