जुबान से जाहिर करूँ मैं, या ये एहसास समझ जाओगे कहूँ दीवाना ख़ुद को या दीवानगी की हद समझ जाओगे लफ्ज़ महके हुए तेरी खुशबु से या गुलाब समझ जाओगे सुध बुध नहीं प्रेम में क्या मेरे 'प्रेम' पैमाना समझ जाओगे ।। प्यार का पैमाना।। जग ज़ाहिर हो गया अब मोहब्बत का फ़साना, मेरे 'हर लफ्ज़ में हो तुम' कह रहा है ये ज़माना। ज़ुबाँ से ज़ाहिर करने की ज़रूरत होती है कहाँ, मेरे चश्मों से छलक जाता है 'प्यार का पैमाना'।