लाख काविश करके भी, विफ़लता हाथ लगती है। किनारे पर पहुँचा कर भी, लहरें हमसे दग़ा करती हैं। जी करता है इंतज़ार करूँ, लहरों के शान्त हो जाने का। पर वक़्त की अहमियत मुझे, ऐसा करने से मना करती है। काविशों का सिलसिला, फिर से शुरू हो जाता है। मेरी टूटी उम्मीदों को एक, नया गंतव्य मिल जाता है। जब हो जाती हूँ उत्साह और ऊर्जा से लबरेज़। कोई लहर, कोई हवा का झोंका, मुझे रोक नहीं पाता है। लाख काविश करके भी, विफ़लता हाथ लगती है। किनारे पर पहुँचा कर भी, लहरें हमसे दग़ा करती हैं। जी करता है इंतज़ार करूँ, लहरों के शान्त हो जाने का। पर वक़्त की अहमियत मुझे, ऐसा करने से मना करती है।