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"तेरा ज़िक्र" ना अप्सरा तुझ-सम कोई, ना जन्नत की को

"तेरा ज़िक्र"

ना अप्सरा तुझ-सम कोई, ना जन्नत की कोई हूर है,
बेइंतेहा हमदम तुझे, कुदरत ने बख्शा नूर है..।।

जुल्फें जैसे घनघोर घटा, जब चेहरे पर छा जाती है,
कमसिन पलकें इतराने को, संग लपक-झपक कर आती हैं,
सौ मदिरालयों का नशा लिए,आँखों में कशिश भरपूर है..
बेइंतेहा हमदम तुझे, कुदरत ने बख्शा नूर है..

हैं नर्म गुलाबी लब तेरे, ये मधु से लबालब भरे हुए,
लाली गालों की दमकती, सूरज को फीका करे हुए,
मिश्री से मीठे बोल तेरे, सब सुनने को मजबूर हैं..
बेइंतेहा हमदम तुझे, कुदरत ने बख्शा नूर है..

यौवन है इतना मतवाला, योगी भी भोगी बन जाए,
तेरी एक झलक बस पाने को, लोगों में संगीनें तन जाएँ,
ना जानें टूटे कितने दिल, हुए कितने चकनाचूर है..
बेइंतेहा हमदम तुझे, कुदरत ने बख्शा नूर है..

बच्चों-सा नटखट दिल तेरा, है निश्छलता से भरा हुआ,
मासूम अदा तेरा मुस्काना, सब सच्चाई से भरा हुआ,
इक बोल प्यार से बोल दे तो, सारे दुःख दिल के दूर हैं,
बेइंतेहा हमदम तुझे, कुदरत ने बख्शा नूर है..

तेरी दीद से मेरा दिन निकले, रातें भी तुझसे ढलती हैं,
साँसों पर तेरा नाम लिखा, धड़कन तेरे दम से चलती है,
हो बैठा गर तुझ-पर निसार, "किशोर" का क्या क़सूर है.?
बेइंतेहा हमदम तुझे, कुदरत ने बख्शा नूर है....।। "तेरा ज़िक्र"
"तेरा ज़िक्र"

ना अप्सरा तुझ-सम कोई, ना जन्नत की कोई हूर है,
बेइंतेहा हमदम तुझे, कुदरत ने बख्शा नूर है..।।

जुल्फें जैसे घनघोर घटा, जब चेहरे पर छा जाती है,
कमसिन पलकें इतराने को, संग लपक-झपक कर आती हैं,
सौ मदिरालयों का नशा लिए,आँखों में कशिश भरपूर है..
बेइंतेहा हमदम तुझे, कुदरत ने बख्शा नूर है..

हैं नर्म गुलाबी लब तेरे, ये मधु से लबालब भरे हुए,
लाली गालों की दमकती, सूरज को फीका करे हुए,
मिश्री से मीठे बोल तेरे, सब सुनने को मजबूर हैं..
बेइंतेहा हमदम तुझे, कुदरत ने बख्शा नूर है..

यौवन है इतना मतवाला, योगी भी भोगी बन जाए,
तेरी एक झलक बस पाने को, लोगों में संगीनें तन जाएँ,
ना जानें टूटे कितने दिल, हुए कितने चकनाचूर है..
बेइंतेहा हमदम तुझे, कुदरत ने बख्शा नूर है..

बच्चों-सा नटखट दिल तेरा, है निश्छलता से भरा हुआ,
मासूम अदा तेरा मुस्काना, सब सच्चाई से भरा हुआ,
इक बोल प्यार से बोल दे तो, सारे दुःख दिल के दूर हैं,
बेइंतेहा हमदम तुझे, कुदरत ने बख्शा नूर है..

तेरी दीद से मेरा दिन निकले, रातें भी तुझसे ढलती हैं,
साँसों पर तेरा नाम लिखा, धड़कन तेरे दम से चलती है,
हो बैठा गर तुझ-पर निसार, "किशोर" का क्या क़सूर है.?
बेइंतेहा हमदम तुझे, कुदरत ने बख्शा नूर है....।। "तेरा ज़िक्र"