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वक्त की रेत पर पैरों के निशान के मानिंद हर साल फिर

वक्त की रेत पर पैरों के निशान के मानिंद
हर साल फिर मौसम बदलते क्यों हैं
जिन्हें डर है दामन पे दाग लग न जाएं
वो बारिश में घर से फिर निकलते क्यों हैं

मुसाफिर ही तो था छोड़कर चला ही गया
वो आईना देखकर फिर संवरते क्यों हैं
कच्चे धागे सी नाजुक हैं भरोसे की डोरें
लोग इसी मुकाम पर आकर फिर फिसलते क्यों हैं...
©abhishek trehan



 🎀 Challenge-371 #collabwithकोराकाग़ज़ 

🎀 यह व्यक्तिगत रचना वाला विषय है। 

🎀 कृपया अपनी रचना का Font छोटा रखिए ऐसा करने से वालपेपर खराब नहीं लगता और रचना भी अच्छी दिखती है। 

🎀 विषय वाले शब्द आपकी रचना में होना अनिवार्य नहीं है। 4 पंक्तियों अथवा 30 शब्दों में अपनी रचना लिखिए।
वक्त की रेत पर पैरों के निशान के मानिंद
हर साल फिर मौसम बदलते क्यों हैं
जिन्हें डर है दामन पे दाग लग न जाएं
वो बारिश में घर से फिर निकलते क्यों हैं

मुसाफिर ही तो था छोड़कर चला ही गया
वो आईना देखकर फिर संवरते क्यों हैं
कच्चे धागे सी नाजुक हैं भरोसे की डोरें
लोग इसी मुकाम पर आकर फिर फिसलते क्यों हैं...
©abhishek trehan



 🎀 Challenge-371 #collabwithकोराकाग़ज़ 

🎀 यह व्यक्तिगत रचना वाला विषय है। 

🎀 कृपया अपनी रचना का Font छोटा रखिए ऐसा करने से वालपेपर खराब नहीं लगता और रचना भी अच्छी दिखती है। 

🎀 विषय वाले शब्द आपकी रचना में होना अनिवार्य नहीं है। 4 पंक्तियों अथवा 30 शब्दों में अपनी रचना लिखिए।