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रंगरेज़ ज़िंदगी 🥀 . ज़िंदगी जब तुम मिली थी तब रं

रंगरेज़ ज़िंदगी 🥀
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 ज़िंदगी जब तुम मिली थी तब रंगीन नहीं थी परन्तु तुम्हारी रूह में किसी सियाह रंग की मौजूदगी भी नहीं थी जिस वजह से मैने कल्पना की थी कि मेरे रास्ते मीलों दूर तक रंगीन होंगे।आसमां में इंद्रधनुष तलाशते - तलाशते जाने कब इन आंखों को ज़िंदगी की परतों से रंग खोजने की कुवत सवार होने लगी। शुरुआत में ऐसा लगता था मानों ज़िंदगी के सारे रंग किसी जिंदान में कैद हो गए है, जिसकी कलीद किसी समुन्द्र की तली में जा गिरी है या फिर किसी मोज़जे ने सभी प्रकाश पुंजों को वक़्त की नीली शोल ओढ़ा कर गहरी नींद में सुला दिया हो जिसे मेरी नग्न आंखें देखने में असमर्थ हो चुकी हो।मैं फिर भी नींद की करवटों से कुछ रेशे उधार लेकर ज़िंदगी को रंगने की कोशिश करती रहती,नित - प्रतिदिन तुम्हें रंगने के बावजूद तुम्हारे रंग चिलचिलाती धूप में फ़ीके पड़ने लगे। ऐसा लगता था कि रंगों से तुम्हारा मराज़िम धुंधला पड़ चुका है।जब मेरा जन्म होने वाला था तब खुशियां हुबाबों की मानिंद अतराफ में फैली हुई दिखाई पड़ती थी लेकिन जन्म के चंद रोज़ उपरांत मेरी पीठ पर उदासी आकर बैठ गई। मैने उदासी को पन्नों पर लिखना चाहा परन्तु लिखने पर उदासी की जड़े जरा भी नहीं हिली,मेरी कलम ने उदास होकर वहीं दम तोड़ दिया फिर मैने उदासी की पीठ को केनवास समझकर ज़िंदगी के प्रत्येक रंग को उकेरा, उदासी की नाड़ियों में ठोस सुर्ख रंग मिला, जिसे नमकीन आंसूओं में घोल कर लाल रंग बनाया गया।उदासी की जठराग्नि में कई दिनों की भूख पायी गई जिसे होंठो पर आई नीली पपड़ी में डाल कर गहरे नीले रंग की रचना की गई।उदासी की योनी में मौजूद स्वेद प्रदर से श्वेत रंग की खोज मुकम्मल हुई।उदासी के मन में उपजी काई से हरे रंग की कोंपल निकल आईं।गहरी सियाह उदासी को मेरी आंखों का कत्थई रंग उदार दिया गया।इस प्रकार उदासी के प्रत्येक हिस्से से रंगो का ईजाद हुआ सिवाए कानो के क्योंकि उदासी बहरी होती है। रंगो की खोज के बाद आविष्कार हुआ एक अज्ञात हंसी का, हंसी के पलो से मुलाकात कर मुझे ज्ञात हुआ कि हंसी के यह पल बहुत मीठे है, किसी गुडधानी से भी ज्यादा।
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  ज़िंदगी मे रंगों की खोज से मैने ज़िंदगी को जीना सीखा, मैने ज़िंदगी के केशों को रजनीगंधा के फूलों से सजाकर ज़िंदगी का हर रंग एक तितली बनकर मकरंद की भांति चूसा है।जब भी किसी अन्य पुष्प ने मुझे अपनी ओर आकर्षित किया तब ज़िंदगी की पीठ पर मैं अपना एक रंग छोड़ कर आगे बड़ी।
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हां, मैने धनघोर उदसियो के बावजूद ज़िंदगी का प्रत्येक रंग जीया है।

©@deep_sunshine1210
  #StoryOnline #StoryOnline #lokdown #lokdownstories 

#dilkibaat
रंगरेज़ ज़िंदगी 🥀
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 ज़िंदगी जब तुम मिली थी तब रंगीन नहीं थी परन्तु तुम्हारी रूह में किसी सियाह रंग की मौजूदगी भी नहीं थी जिस वजह से मैने कल्पना की थी कि मेरे रास्ते मीलों दूर तक रंगीन होंगे।आसमां में इंद्रधनुष तलाशते - तलाशते जाने कब इन आंखों को ज़िंदगी की परतों से रंग खोजने की कुवत सवार होने लगी। शुरुआत में ऐसा लगता था मानों ज़िंदगी के सारे रंग किसी जिंदान में कैद हो गए है, जिसकी कलीद किसी समुन्द्र की तली में जा गिरी है या फिर किसी मोज़जे ने सभी प्रकाश पुंजों को वक़्त की नीली शोल ओढ़ा कर गहरी नींद में सुला दिया हो जिसे मेरी नग्न आंखें देखने में असमर्थ हो चुकी हो।मैं फिर भी नींद की करवटों से कुछ रेशे उधार लेकर ज़िंदगी को रंगने की कोशिश करती रहती,नित - प्रतिदिन तुम्हें रंगने के बावजूद तुम्हारे रंग चिलचिलाती धूप में फ़ीके पड़ने लगे। ऐसा लगता था कि रंगों से तुम्हारा मराज़िम धुंधला पड़ चुका है।जब मेरा जन्म होने वाला था तब खुशियां हुबाबों की मानिंद अतराफ में फैली हुई दिखाई पड़ती थी लेकिन जन्म के चंद रोज़ उपरांत मेरी पीठ पर उदासी आकर बैठ गई। मैने उदासी को पन्नों पर लिखना चाहा परन्तु लिखने पर उदासी की जड़े जरा भी नहीं हिली,मेरी कलम ने उदास होकर वहीं दम तोड़ दिया फिर मैने उदासी की पीठ को केनवास समझकर ज़िंदगी के प्रत्येक रंग को उकेरा, उदासी की नाड़ियों में ठोस सुर्ख रंग मिला, जिसे नमकीन आंसूओं में घोल कर लाल रंग बनाया गया।उदासी की जठराग्नि में कई दिनों की भूख पायी गई जिसे होंठो पर आई नीली पपड़ी में डाल कर गहरे नीले रंग की रचना की गई।उदासी की योनी में मौजूद स्वेद प्रदर से श्वेत रंग की खोज मुकम्मल हुई।उदासी के मन में उपजी काई से हरे रंग की कोंपल निकल आईं।गहरी सियाह उदासी को मेरी आंखों का कत्थई रंग उदार दिया गया।इस प्रकार उदासी के प्रत्येक हिस्से से रंगो का ईजाद हुआ सिवाए कानो के क्योंकि उदासी बहरी होती है। रंगो की खोज के बाद आविष्कार हुआ एक अज्ञात हंसी का, हंसी के पलो से मुलाकात कर मुझे ज्ञात हुआ कि हंसी के यह पल बहुत मीठे है, किसी गुडधानी से भी ज्यादा।
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  ज़िंदगी मे रंगों की खोज से मैने ज़िंदगी को जीना सीखा, मैने ज़िंदगी के केशों को रजनीगंधा के फूलों से सजाकर ज़िंदगी का हर रंग एक तितली बनकर मकरंद की भांति चूसा है।जब भी किसी अन्य पुष्प ने मुझे अपनी ओर आकर्षित किया तब ज़िंदगी की पीठ पर मैं अपना एक रंग छोड़ कर आगे बड़ी।
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हां, मैने धनघोर उदसियो के बावजूद ज़िंदगी का प्रत्येक रंग जीया है।

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