" सर्वनाम का अत्याधिक प्रयोग व्यर्थ भ्रम की उत्पत्ति का कारक होता है । जहाँ संज्ञा आवश्यक है वहाँ सर्वनाम को आराम ही करने दीजिये । " - सर्वनामों से त्रस्त एक संज्ञा सर्वनाम की सम्पूर्ण व्यथा और कथा अनुशीर्षक में पढ़िए। संभवतः आदिकाल में जब प्रकृति विभिन्न स्तरों पर सृजनरत थी, तब भाव और संवादों की नवकोपल भी भाषा रूपी तरु के उद्भव की ओर अग्रसर रही होंगी और संभवतः मनुष्य नवयुग के वृहद भाषाई शब्दकोश के बिना भी संवादों के आदान प्रदान में सक्षम विकास के नए पायदानों की ओर अग्रसर रहा होगा । भाषा के विकास से ही सीधा संबंध रखता है भाषाई गणित अर्थात व्याकरण का प्रयोग । हर भाषा की व्याकरण संज्ञा, सर्वनाम, क्रिया, विशेषण , संधि, समास, अलंकार और भी अनेकानेक भाषा की शुद्धता के पैमाने समाहित किये होती है, जिन्हें आम मानुष दैनिक बोलचाल आचार व्यवहार में उपयोग तो करता है लेकिन व्याकरण के पुस्तकीय ज्ञान में कोई भाषा विशेषज्ञ ही महारत हासिल कर पाता है । मेरे मन की कल्पना शक्ति के आकलन के अनुसार 'संज्ञा' को यह संज्ञा भाषा के शैशव काल में ही मिल गई होगी , तदोपरांत'सर्वनाम' अवश्य ही 'संज्ञा' की सहायक बन भाषा में सम्मिलित हुई होगी । कक्षा एक से कक्षा पाँच तक प्रतिवर्ष मेरे शिक्षकों द्वारा रटाई गई सर्वनाम की परिभाषा भी स्मृति पटल पर उतनी ही गहराई से अंकित है जितने इतिहास में हड़प्पा संस्कृति के अवशेष टंकित हैं । "संज्ञा के स्थान पर प्रयोग किए जाने वाले शब्दों को सर्वनाम कहते हैं।" भाषा के विकास के साथ ही भाषा का दुरुपयोग भी विकसित हुआ । विशेषज्ञों की भाषा में जिसे अपभ्रंश कहा जाता है । हम बहुदा रोजमर्रा की भाषा में अपभ्रंश ही उपयोग करते हैं और भाषा की शुद्धता पुस्तकों के पन्नों में सिमटी रह जाती है । ऐसे ही अनेक दुरूपयोगों में से एक दुरुपयोग है आवश्यकता से अधिक सर्वनाम का प्रयोग या यूँ कहिये कि कीन्ही अपरिहार्य कारणों से संज्ञा के सीधे प्रयोग से बचने के लिए सर्वनाम अथवा विशेषण शब्दों का प्रयोग किया जाना । इसी कड़ी में एक उत्कृष्ट उदाहरण है राजनीतिक व्यंग और विपक्षी दल पर कसे जाने वाले कसीदे । बहुत ही उम्दा तरीके से सर्वनाम और विशेषण का प्रयोग कर सीधे तथाकथित विरोधी के हृदय और मष्तिष्क तक बात पहुँचा दी जाती है । इसी तरह राजनीति का खेल घर गृहस्थी में भी होता है, कभी पति पत्नी के बीच, कभी भाई-भाई, कभी सास-बहू तो कभी देवरानी-,जेठानी के बीच भी शीत युद्ध इन सर्वनामों की ढाल से ही जीता जाता है ।