**नहीं भुला पाया** तेरी वो नर्म बाहें, उलझी हुई जु़ल्फें वो खामोश सांसै नहीं भुला पाया हूं। सब कुछ नया सा था उस एक पल ने जीना सिखाया था ।। कुछ इस तरह मैंने उसको अपनी बाहों में समाया था। जेसै आसमान की आगोश मैं चांद आया था।। उसकी आंखों मे एक अजीब रंग समाया था। उनमें देख कर मैंने अपनी गर्दन को उनके सदके़ झुकाया था।। उसकी जु़ल्फे उलझती बिखरती बहुत है, जैसे तेज़ हवा के झोंको ने उनको बे तरतीब सजाया हो। मैं अन जुल्फो को सुलझाता रह गया जैसे समुंद्र के पानी की लेहरो को कोई समेट ना पाया हो ।। मेरे बाज़ूओ ने कुच इस तरह बेहयाई दीखाई, उस नाज़ुक सी चीज को मरोङ दीया था। उसकी सांसों को ये बेहयाई समझा ना पाया ।। तेरी वो नरम बाहे, उलझी हुई जुल्फें वो खामोश सांसै नहीं भुला पाया हूं।।।। तालिब अली Nahi Bhula Paya