#याँदों की बारात.... अच्छी थी पुरानी गाँव की वह पगडंडी अपनी सड़कों पर तो ट्रॉफीक जाम बहुत हैं फुर्र हो गई फुर्सत अब तो खुद के वास्ते कम और बेकाम लोगों के खातिर काम बहुत हैं नहीं रहीं जरूरत यहाँ बूढ़ों की अब हर बच्चा अब संस्कारहीन रहनेवाला बुद्धिमान बहुत हैं उजड़ गए सब बाग बगीचे दो गमलों में ही हजार पोधोंवाली शान बहुत हैं मट्ठा,दही नहीं खाते हैं कहते हैं ज़ुकाम बहुत हैं पीते हैं जब चाय कहीं कहते हैं आराम बहुत हैं बंद हो गई चिट्ठी पत्री और बंद हो गए पुराने संदेसों के तरीके अब तो सिर्फ फोन और मोबाईल पर पैगाम बहुत हैं आदी हैं हर कोई यहाँ ए.सी.के इतने कहतें हैं के अब बाहर पसीना बहुत हैं झुके झुके स्कूली बच्चे यहाँ अब बस्तों में सामान बहुत हैं सुविधाओं का तो यहाँ ढे़र लगा पडा़ हैं फिर भी इंसान यहाँ परेशान बहुत हैं @शब्दभेदी किशोर ©शब्दवेडा किशोर #याँदों_की_बारात