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"तंत्र" सभी फेल है अब! "मंत्र" की स्तुति करो!! "वि

"तंत्र" सभी फेल है अब!
"मंत्र" की स्तुति करो!!
"विज्ञान" हो चुका अपंग है!
"प्रकृति" से छेड़छाड़ ना करो!!

खुदा समझ रहा था "मनुष्य" खुद को! 
विज्ञान का "अहंकार" था!!
विश्व "चुनौती" दे रहा था! 
प्रकृत को समझता "लाचार" था!!

खोल दिया है "नेत्र" उसने!
 खेल शुरू अब हो "चुका" है!!
खोलकर "जटा" को उसने! 
"तांडव" शुरू अब कर दिया है!!

रोक सको तो रोक लो अब कोप "भोलेनाथ" का!!
दंड मिलना तय है "प्रकृति से छेड़छाड़" का!!

©PRAMILA LALIT SHUKLA
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"प्रकृति" Anaya Mishra ऊषा माथुर अधूरी बातें  चिंतन Rohit143  प्रेरणादायी कविता मराठी कविताएं

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