सुबह के 7:30 बजे थे हम स्कूल की प्रार्थना करके लौटने ही वाले थे त्यो ही प्रिन्सीपल सर ने माइक पर खाँसते हुये कहा 15 अगस्त के प्रोग्राम के लिये जिसको भी नाम देने है वो कठेरिया जी और पातीराम जी को अपने नाम लिखा दे आज तक कभी किसी प्रोग्राम में हिस्सा नही लिया अब भी साथ चाहिए था एक दोस्त का जो बना चिंटू हम दोनो ने सर को अपना नाम लिखवा दिया सर ने कहा ,बेटा लन्च के बाद आ जाना हम मान चुके थे हमारा चयन हो गया है।खुशी चेहरे पर रसगुल्ले की चासनी की तरह टपक रही थी हो भी क्यू ना ये लोगो के लिये सिर्फ प्रोग्राम ही था पर हमारे लिये किसी को आखिरी बार हक से देखने का मौका था लन्च की बैल बची मैं और चिन्टू सीढीयो की बाधाओ को पार करते हुये जा पहुँचे नये काॅमर्स हाल में सब लोग बैठे थे शायद हम थोडा लेट हो गये थे थोडी देर बाद चिन्टू का नाम बुला वो गया और उसने कुमार सर की कविता गाई ....कोई दीवाना कहता है..... सर ने पूरी ना सुनकर उससे मना कर दिया मैं पूरी तरह Hopeless हो गया था मेरा गला सूख गया था मेरा नाम बुला मैं गया और बोलने लगा......सीमा पर एक जवान ..... सर टोकते हुये बोले कहानी ना सुनाओ गीत गाओ मैने रूककर बोला सर लाइन्स के बाद गीत है सर हसँने लगे ये कैसा गीत अगर यही वाकया आज हुआ होता तो कहता सर ये गीत का Prime mover है किसी चीज को स्टार्ट करने के लिये उपयोगी चीज prime mover कहलाती है तो हाँ मैनें गीत शुरू किया.. कि बलिदान को आँसुओ से धोना नही तुझको कसम है माँ मेरी रोना नही है।सब लोग तालियाँ बजा रहे थे मेरा चयन एक दम पक्का हो गया था वैसे मैने UPSC तो clear नही किया था मगर मेरे लिये ये उससे कम भी ना था पर मेरे चेहरे पर खुशी ना थी 15अगस्त 2014 का दिन था सभी देशभक्ति से ओत-प्रोत थे मैं भी था पर नजरे लोहे के बडे जालीदार गेट पर टिकी थी हाँ कुबूल करता हूँ इन्तजार था मुझे किसी का, हो भी क्यू ना यार मेरे लिये उसका चेहरा Boost का काम करता था भाई मैं अकेला ही नही हर कोई अपनी dream girl को देखरहा था 8 बजे ध्वजा रोहण हुआ हर कोई कोशिश कर रहा था की वो ऐसी जगह बैठे कि अपनी हीर से नयन चार कर सके पर प्रिन्सीपल सर खलनायक बन गये और उन्होने सब को दूर दूर बैठा दिया .... प्रोग्राम की शुरूआत माँ सरस्वती की वन्दना से हुयी फिर देश भक्ति गीत ,हनुमान चालीसा , व बेटी पढाओ के सन्देश के साथ समापन होने वाला था मुझे याद आया कि मेरा नाम तो बुला ही नही लग रहा था मानो एक ख्वाव टूटने की कगार पर था मैं पातीराम सर के पास गया उन्हे याद आया फिर उन्होने कठेरिया सर से मुझे भेजने को कहा प्रिन्सीपल सर ने भी अनुमति दे दी मेरे हाथ मैं माइक था मेरे मित्र वो और उसकी सहेलिया मेरे सामने थे मैने आँखे बन्द की पर हल्की खुली थी मैनें गाना शुरू किया कि बलिदान को आँसुओ से धोना नही तुझको कसम है माँ मेरी रोना नही है..मैं गाना गाते वक्त सिर्फ उसके और उसकी चश्मे वाली सहेली को देख रहा था चश्मे वाली सहेली का निक नेम बैट्ररी था वैसे उसे देखने का कोई intention नही था...... पर जब जब पगलिया को देखता तो बैट्ररी के चश्मे का reflection पड जाता । मैं फिर भी उस पगली के कानो की बाली को ,लवो की लाली को ,निहारे जा रहा था। उसके बाल सूरज की रोशनी में सोने की तरह चमक रहे थे वो बार बार इनको कानो के पीछे ले जाने की नाकामयाब कोशिश कर रही थी अन्ततः उसने अपने "क्लेचर" अरे वो जिससे लडकियाँ अपने आवारगी कर रहे वालो को कल्चर सिखाती है तो हाँ उसने क्लेचर को अपने दाँतो और होठो के बीच दबाकर अपने दोनो हाथो से बालो को घुमाया ही था त्यो ही तालियो की गडगडाहट बजने लगी उस समय दिल में वही गुस्सा था जो किसी हसीन ख्बाब के टूटने पर होता है। प्रिन्सीपल सर ने पीठ थपथपाते हुये मुझे एक सौ रूपये का ईनाम दिया मैं सभी गुरूजनो का आर्शीवाद को लेकर अपने यारो के बीच आ चुका था पर मेरा दिल उस पगली की उस अदा ने चुरा लिया था कुछ देर बाद प्रसाद वितरण हुआ सब अपने घर चले गये वैसे मैं रात भर रोज पढने के लिये जागता था पर उस रात मैं सिर्फ उसके ख्यालो मे मगरूर था अगली सुबह स्कूल जा रहा था सडक पार करने के बाद आवाज आयी रूक जा यार, मैं पीछे मुडा वो ही थी चेहरे पर एक चमक और दिल में एक सुकून आ जाता था जब भी ये दिल उसकी आवाज और साथ पाता था उसने congratulation कहा और बोली अच्छा गाया । बस उसका इतना कहना मेरे लिये आॅस्कर अवार्ड से कम नही था हम काॅलेज तो साथ पहुँचे थे पर क्लास में उसे पहले जाने दिया पाँच मिनट बाद मैं गया वो और उसकी सहेली बैट्ररी साथ बैठी थी बैट्ररी बोली तूने कैसे गाया मैने इशारा पगली की तरफ करते हुये कहा बस तेरे चश्मे के reflection ने हिम्मत दे रखी थी उसे, वो मेरा पहला इशारा था दोस्ती को मोहब्बत में बदलने का काश वो समझ पाती.. .#जलज_कुमार" प्रेम परिपूर्ण हर किसी का होता नहीं, उदाहरण हैं कहानी कृष्ण और राधा की, एक बाँसुरी के पीछे राधा थी दीवानी संसार बचाने को अपना संसार दांव पर लगा बैठी रुकमनी, पूछता हूँ प्रश्न आज जमाने से यही, कि अगर सिया के राम हो सकते हैं, तो रुकमनी के कृष्ण क्यूँ नहीं, प्रेम तो रुकमनी को भी कृष्ण से था,