नज़रों से नज़रे मिली घायल दिल हुआ है महबूब के "हुस्न" की कैसी ये जादूगरी है कजरारी आँखों में "सुरमा" लगाए बैठे है दिल पर "ज़ालिम" बिजली गिराए बैठे हैं माथे पर बिंदिया "सूरज" सी चमक रहीं है उस पर "माहताब सा" टीका लगाए बैठे हैं नयन मयखाना से,मदिरा "बरसाये" बैठे है मदहोश हैं हम, वो भी ज़ाम सजाये बैठे है "कृष्ण वर्ण" से ये केश "मनोहारी" लगे है मानो "बादलों" के संग वो इतराए बैठे है पाँव में "पायल" खनकती "सुरीली" सी है मोहन की "मुरली" "राधे" के लिए बजे है रमज़ान:_ हुस्न की जादूगरी नज़रों से नज़रे मिली घायल दिल हुआ है महबूब के "हुस्न" की कैसी ये जादूगरी है कजरारी आँखों में "सुरमा" लगाए बैठे है दिल पर "ज़ालिम" बिजली गिराए बैठे हैं माथे पर बिंदिया "सूरज" सी चमक रहीं है