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सोचता हूं आज एक सच कह दूं, ये कविता तेरे नाम रच द

सोचता हूं आज एक सच कह दूं,

ये कविता तेरे नाम रच दूं।

उठी उमंगें_ मन  कुछ डोल रहा,

राज दिल की कुछ खोल रहा,

जो कह न सका अब तलक 

सोचता हूं धड़कन भी तेरे पास रख दूं।।

बयां करूं कैसे लब्जों में,

सज्जित जहां भी तेरे हाथ रख दूं।

बसी है खुशबू तेरी सांसों में मेरी,

कदमों में तेरे सारी कायनात धर दूं।

दर्द_ए दिल ये कलम बोल रही,

बेचैन दिल को कुछ आवाज भर दूं।

गम का भी न हो एहसास तुझे,

कोरे कागज पे मैं कुछ खास लिख दूं।

तेरी खातिर झुका दूं आसमां सारा,

बस स्याही कलम की कुछ तेज कर दूं।।।

WRITTEN BY (संतोष वर्मा) आजमगढ़ वाले

खुद की ज़ुबानी.... सोचता हूं...
सोचता हूं आज एक सच कह दूं,

ये कविता तेरे नाम रच दूं।

उठी उमंगें_ मन  कुछ डोल रहा,

राज दिल की कुछ खोल रहा,

जो कह न सका अब तलक 

सोचता हूं धड़कन भी तेरे पास रख दूं।।

बयां करूं कैसे लब्जों में,

सज्जित जहां भी तेरे हाथ रख दूं।

बसी है खुशबू तेरी सांसों में मेरी,

कदमों में तेरे सारी कायनात धर दूं।

दर्द_ए दिल ये कलम बोल रही,

बेचैन दिल को कुछ आवाज भर दूं।

गम का भी न हो एहसास तुझे,

कोरे कागज पे मैं कुछ खास लिख दूं।

तेरी खातिर झुका दूं आसमां सारा,

बस स्याही कलम की कुछ तेज कर दूं।।।

WRITTEN BY (संतोष वर्मा) आजमगढ़ वाले

खुद की ज़ुबानी.... सोचता हूं...