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प्रेम.. प्रेम सा कहाँ रहा बही-खाते की लिपि बना तु

प्रेम..
प्रेम सा कहाँ रहा
बही-खाते की लिपि बना

तुमने वो न किया
मैंने यह सब किया
नाप-तोल तराजू बना

तुम वो नहीं अब
मुझको वो न रहने दिया
आकलन का बिन्दु बना

तुम प्रेम योग्य नहीं
मैंने कैसे प्रेम कर लिया
पश्चाताप की अदृश्य नदी बना

तुमने जीना दुश्वार किया
मैंने स्वयं कंटक पथ चुना 
रोज़-रोज़ का अनर्गल प्रलाप बना

तुम भी चुप
मैं भी चुप
बिना क़ैद, क़ैदखाना बना

प्रेम.
अब प्रेम सा कहाँ रहा 
काल्पनिक चोला उतार
यथार्थ धरा पर खड़ा...!
🌹
  प्रेम..
प्रेम सा कहाँ रहा
बही-खाते की लिपि बना

तुमने वो न किया
मैंने यह सब किया
नाप-तोल तराजू बना
प्रेम..
प्रेम सा कहाँ रहा
बही-खाते की लिपि बना

तुमने वो न किया
मैंने यह सब किया
नाप-तोल तराजू बना

तुम वो नहीं अब
मुझको वो न रहने दिया
आकलन का बिन्दु बना

तुम प्रेम योग्य नहीं
मैंने कैसे प्रेम कर लिया
पश्चाताप की अदृश्य नदी बना

तुमने जीना दुश्वार किया
मैंने स्वयं कंटक पथ चुना 
रोज़-रोज़ का अनर्गल प्रलाप बना

तुम भी चुप
मैं भी चुप
बिना क़ैद, क़ैदखाना बना

प्रेम.
अब प्रेम सा कहाँ रहा 
काल्पनिक चोला उतार
यथार्थ धरा पर खड़ा...!
🌹
  प्रेम..
प्रेम सा कहाँ रहा
बही-खाते की लिपि बना

तुमने वो न किया
मैंने यह सब किया
नाप-तोल तराजू बना