मेरी ही ज़मीं लूट कर देने वो आ गए। दे करके ज़ख़्म!काँटों से सीने वो आ गए । मुलज़िम ने कहा ख़ुद ही वोह ख़ंजर पे गिरा था। ज़ख़्मी की सज़ा मौत!सुनाने वो आ गए। ख़ैरात की ज़मीन।और मस्जिद बनाए हम। मंदिर को अब मस्जिद से मिलाने वो आ गए । अंधों ने किया फ़ैसला बैहरों के शहेर में। गूँगे अमन की राग!सुनाने को आ गए। इस्हाक़ हँसु रो लूँ या गुज़र जाऊँ गली से। अपमान को अहसान से धोने वो आ गए। इस्हाक़...अन्सारी इस्हाक़ अन्सारी