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मेरी ही ज़मीं लूट कर देने वो आ गए। दे करके ज़ख़्म!

मेरी ही ज़मीं लूट कर देने वो आ गए।
दे करके ज़ख़्म!काँटों से सीने वो आ गए ।
मुलज़िम ने कहा ख़ुद ही वोह ख़ंजर पे गिरा था।
ज़ख़्मी की सज़ा मौत!सुनाने वो आ गए।
ख़ैरात की ज़मीन।और मस्जिद बनाए हम।
मंदिर को अब मस्जिद से मिलाने वो आ गए ।
अंधों ने किया फ़ैसला बैहरों के शहेर में।
गूँगे अमन की राग!सुनाने को आ गए।
इस्हाक़ हँसु रो लूँ या गुज़र जाऊँ गली से।
अपमान को अहसान से धोने वो आ गए।

इस्हाक़...अन्सारी इस्हाक़ अन्सारी
मेरी ही ज़मीं लूट कर देने वो आ गए।
दे करके ज़ख़्म!काँटों से सीने वो आ गए ।
मुलज़िम ने कहा ख़ुद ही वोह ख़ंजर पे गिरा था।
ज़ख़्मी की सज़ा मौत!सुनाने वो आ गए।
ख़ैरात की ज़मीन।और मस्जिद बनाए हम।
मंदिर को अब मस्जिद से मिलाने वो आ गए ।
अंधों ने किया फ़ैसला बैहरों के शहेर में।
गूँगे अमन की राग!सुनाने को आ गए।
इस्हाक़ हँसु रो लूँ या गुज़र जाऊँ गली से।
अपमान को अहसान से धोने वो आ गए।

इस्हाक़...अन्सारी इस्हाक़ अन्सारी
ishaqansari1440

Ishaq Ansari

New Creator