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चलती चाकी देखकर, कबीरा दिया रोय। दुइ पाटन के बीच म

चलती चाकी देखकर, कबीरा दिया रोय।
दुइ पाटन के बीच में, साबुत बचा ना कोय॥ महान कवि कबीर ने जब चलती हुई चक्की (गेहूं पीसने या दाल पीसने में इस्तेमाल किया जाने वाला यंत्र) को देखा तो वह रोने लगे क्योंकि वह देखते हैं कि किस प्रकार दो पत्थरों के पहियों के निरंतर आपसी घर्षण के बीच कोई भी गेहूं का दाना या दाल साबूत नहीं रह जाता, वह टूटकर या पिस कर आंटे में परिवर्तित हो हीं जाता है।

वस्तुतः कबीर अपने इस दोहे से कहना चाहते है कि इस संपूर्ण चराचर जगत में कोई भी शादीशुदा पुरूष चैन से जी हीं नहीं सकता, माँ और पत्नी के बीच फँसा पुरुष चाहे कोई भी युक्ति क्यों न लगा ले, उसका मानसि
चलती चाकी देखकर, कबीरा दिया रोय।
दुइ पाटन के बीच में, साबुत बचा ना कोय॥ महान कवि कबीर ने जब चलती हुई चक्की (गेहूं पीसने या दाल पीसने में इस्तेमाल किया जाने वाला यंत्र) को देखा तो वह रोने लगे क्योंकि वह देखते हैं कि किस प्रकार दो पत्थरों के पहियों के निरंतर आपसी घर्षण के बीच कोई भी गेहूं का दाना या दाल साबूत नहीं रह जाता, वह टूटकर या पिस कर आंटे में परिवर्तित हो हीं जाता है।

वस्तुतः कबीर अपने इस दोहे से कहना चाहते है कि इस संपूर्ण चराचर जगत में कोई भी शादीशुदा पुरूष चैन से जी हीं नहीं सकता, माँ और पत्नी के बीच फँसा पुरुष चाहे कोई भी युक्ति क्यों न लगा ले, उसका मानसि