मन की... अटकी सी सांसे घुटता दम । खुल कर सामने आ तो लड़ ले तुझसे। ये लुकाछिपी ये चोर सिपाही ।। ये कैद सी दुनिया और जग हँसाई ।। मन मजबूत पर आंखे डबडबाई। रो लेने दे यार थोड़ा मन भर। अंदर भरी है जाने क्या सच्चाई। चीख लूँ ,चिल्ला लूँ, थोड़ा पगला लूँ। थोड़ा मन की बातें आज़मा लूँ। ये बनावटी बेमतलब की अकड़। दोस्त थोड़ी देर के लिए पकड़ ।। मैं थोड़ा सा सुस्ता लूँ। थोड़ा खुद को खुद से मिला लू। दम घुटता है बनावट से मेरा। हूँ थोड़ा ऐसा ही अजीब, पागल नहीं हूँ। ये मुखौटा है जिनकी पसंद । वो लोग मुझको नापसंद है। मन मे अजीब सी चाहें है । चल थोड़ा पगला लूँ। "चिंतन" #मन की उधेड़बुन #अटपटी राहें #बेकार की बातें