सपन सुहाना आजादी का खण्डित काया इस माटी का, संबंधों को बिखराया जो कुटिल सयाना ब्रितानी था। हृद पर रख कर अपने पत्थर अरमानों में रंग भरे थे, अपने घर में तू खुश रहना मेरे संग भी बचे खरे थे। मंथर गति से चला पवन था हरियाली फैला उपवन था, केसर क्यारी फूल खिले थे झेलम संग आरक्षित वन था। दिशा नई थी देश पुराना नव विहान का ताना-बाना, कुटिल पड़ोसी देश हुआ था मिला समर का उसे बहाना। एक छली था छल से जीता पंचशील का पानी पीता, दूजे ने फिर टांग अड़ाई उसको घर में घुसकर पीटा। दिन प्रतिदिन हम बढ़ते जाते नित नवीन तटबंध बनाते, आज चाँद पर पहुंच गए हम आजादी का गीत सुनाते। ©Sj...✍ #शुभाक्षरी #15_August