कितनी महंगी है कवितायें, कैसे तुमको समझाऊँ… कितनी इसमें मधुशाला है, कितनी जागी रातें.. कितनी आहत भाव है इसमें, कितनी अनकही बातें, मोल नही मिलती है आहें, मोल ना मिलती बाहें… कितनी महंगी कविताएं है… ©The Urban Rishi कितनी महंगी है कवितायें, कैसे तुमको समझाऊ… कितनी इसमें मधुशाला है, कितनी जागी रातें.. कितनी आहत भाव है इसमें, कितनी अनकही बातें, मोल नही मिलती है आहें, मोल ना मिलती बाहें…