क्या हर्ज़ है, तुम्हे यूँ रात भर सोचने में, तुमसे नहीं तो तुम्हारी उन तश्वीरो से बातें करने में , क्या हर्ज़ है तुम्हे देख मुस्कुराने में, ख्वाबों में ही सही ,तुम्हे गले लगाने में, क्या हर्ज़ है तुम्हारी कातिलाना आँखों में देखने मे, तुमसे जुडी बाते ज़माने को बताने में , क्या हर्ज़ है महफ़िलों में मुस्कुराकार तन्हाईओं में तुम्हे याद कर रोने में, क्या हर्ज़ है तुम्हारा नाम छुपा कर भी, सिर्फ और सिर्फ तुमसे वफ़ा निभाने में, मुझे तो कोई दिक्कत नहीं तुमसे एकतरफ़ा इश्क़ निभाने में, तुम्हे क्या हर्ज़ है मेरा सिर्फ तुम्हारी दीवानी बन के रह जाने में। #latenightthought