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मैं मुक्कमल एक किताब लिख दूं दर्द सारा उतार रख दूं

मैं मुक्कमल एक किताब लिख दूं
दर्द सारा उतार रख दूं
बैठे बैठे क्यूं यूं ही निकल आते हैं आंसू,
मैं उन आंसूओं का सारा हिसाब लिख दूं
और भीतर सीना भारी भारी सा रहता है
दिल को सीनें से बाहर निकाल रख दूं
और कब कब कितना कहा दुखाया दिल उसने
जो बयां न हो सकें मैं सारे वो एहसास लिख दूं

©Rahul Jii
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