#बंजारों सी फितरत थी, फिरते थे दर--बदर••• फैला राहों में ज़हर है,अब तो शहर में रहो••।। बन गए थे अनजान, तुम अपनो के बीच मे••• ये खुशकिस्मती ही तो है,,की उनकी नज़र में रहो••।। उड़ान रोक दो फिलहाल,, पँखो को आराम दे दो••• ये घोंसला तुम्हारा,पंछियों अपने घर मे रहो••।। खाक छानते फिरे हो,, हर गली चौबारे की•••• तूफान के हालात हैं #प्रीत,ना सफ़र में रहो••।। #प्रीती_शुक्ला•••