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#खोटी लड़की #KL फरिश्तों की सोहबत उसे ना मिली हमकद

 #खोटी लड़की

#KL
फरिश्तों की सोहबत उसे ना मिली हमकदम जो मिले सब गुनहगार थे।

मैं कंपनी के काम से जयपुर आई हुई थी। तीन-चार दिन का ही काम था, रविवार की वापसी की ट्रेन थी सारा दिन खाली था, सोचा थोड़ी शॉपिंग कर लूं। बस फिर क्या था पहुंच गई बाज़ार,काफी देर इधर-उधर घूमती रही तभी अचानक मुझे लगा कि सामने वाली दुकान पर कोई तो है जो जान पहचान का है। हाँ, मैं उन्हें पहचानने की कोशिश कर रही थी, फिर लगा अरे वो मेरे पिता के बहुत अच्छे दोस्त थे अनवर अंकल। पर अचानक ही एक दिन दोनों दोस्तों में झगड़ा हुआ फिर अनवर अंकल कभी दिखाई नहीं दिये। मैं दुकान के अंदर जाकर कपड़े देखने लगी,सोचा एक बार कन्फर्म हो जाऊं। ऊनकी आवाज़ ,उनका बोलने का तरीका बिल्कुल अनवर अंकल जैसा था,बहुत बूढ़े दिख रहे थे वो।मैंने उनके पास जाकर पूछा पहचाना मुझे? वह अपने मोटे से चश्मे को साफ करते हुए पहचानने की नाकाम कोशिश करने लगे। उपासना हूँ मैं अंकल, आपके दोस्त प्रितपाल की बेटी उनकी आंखों में चमक आई और चली गई। फिर पूछने लगे घर में सब ठीक है ना, मैंने हाँ में सिर हिलाया और उनसे पूछा कि वह अचानक कहां गायब हो गए थे ? मेरी बात को टालते हुए वे मेरी नौकरी के बारे में पूछने लगे। सारा दिन खाली थी मेरी रात की ट्रेन थी, ‌‌सोचा थोड़ी देर के लिये अंकल के घर हो कर आती हूँ। मुझे उनकी अम्मी के हाथ का खाना बहुत अच्छा लगता था, मैने अंकल को बताया कि मैं अम्मी से मिलना चाहती हूँ, पर शायद वो मुझे घर नहीं ले जाना चाहते थे इसलिये टाल मटोल करने लगे। मैं भी
 उनके घर जाने की जिद करने लगी।
 #खोटी लड़की

#KL
फरिश्तों की सोहबत उसे ना मिली हमकदम जो मिले सब गुनहगार थे।

मैं कंपनी के काम से जयपुर आई हुई थी। तीन-चार दिन का ही काम था, रविवार की वापसी की ट्रेन थी सारा दिन खाली था, सोचा थोड़ी शॉपिंग कर लूं। बस फिर क्या था पहुंच गई बाज़ार,काफी देर इधर-उधर घूमती रही तभी अचानक मुझे लगा कि सामने वाली दुकान पर कोई तो है जो जान पहचान का है। हाँ, मैं उन्हें पहचानने की कोशिश कर रही थी, फिर लगा अरे वो मेरे पिता के बहुत अच्छे दोस्त थे अनवर अंकल। पर अचानक ही एक दिन दोनों दोस्तों में झगड़ा हुआ फिर अनवर अंकल कभी दिखाई नहीं दिये। मैं दुकान के अंदर जाकर कपड़े देखने लगी,सोचा एक बार कन्फर्म हो जाऊं। ऊनकी आवाज़ ,उनका बोलने का तरीका बिल्कुल अनवर अंकल जैसा था,बहुत बूढ़े दिख रहे थे वो।मैंने उनके पास जाकर पूछा पहचाना मुझे? वह अपने मोटे से चश्मे को साफ करते हुए पहचानने की नाकाम कोशिश करने लगे। उपासना हूँ मैं अंकल, आपके दोस्त प्रितपाल की बेटी उनकी आंखों में चमक आई और चली गई। फिर पूछने लगे घर में सब ठीक है ना, मैंने हाँ में सिर हिलाया और उनसे पूछा कि वह अचानक कहां गायब हो गए थे ? मेरी बात को टालते हुए वे मेरी नौकरी के बारे में पूछने लगे। सारा दिन खाली थी मेरी रात की ट्रेन थी, ‌‌सोचा थोड़ी देर के लिये अंकल के घर हो कर आती हूँ। मुझे उनकी अम्मी के हाथ का खाना बहुत अच्छा लगता था, मैने अंकल को बताया कि मैं अम्मी से मिलना चाहती हूँ, पर शायद वो मुझे घर नहीं ले जाना चाहते थे इसलिये टाल मटोल करने लगे। मैं भी
 उनके घर जाने की जिद करने लगी।