|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 10
।।श्री हरिः।।
14 - सात्विकी श्रद्धा
'मैं एक प्रार्थना करने आया हूँ।' जिन्हें लोग 'सरकार' 'अन्नदाता' कहते थकते नहीं थे, वे नरेश स्वयं आये थे एक कंगाल ब्राह्मण की झोंपड़ी पर। उन्हें भी - जिनकी आज्ञा ही उनके राज्य में कानून थी और जिनकी इच्छा किसी को भी उजाड़-बसा सकती थी, उन्हें उस मुट्ठीभर हड्डी के दुर्बल ब्राह्मण से अपनी बात कहने में भय लगता था।
'क्या कहना है तुम्हें?' न सरकार, न अन्नदाता - वह ब्राह्मण इस प्रकार बोल रहा था जैसे नरेश वह है और जो नरेश उसके सामने खड़े हैं, वे उसके भिक्षुक अथवा सेवक हैं। उसे कोई आश्चर्य नहीं हुआ था, जब नरेश उसकी झोंपड़ी पर पधारे थे। उसने उनके स्वागत-सत्कार की कोई व्यस्तता नहीं दिखलायी थी।