पूर्ण जीवन, केवल मानवता की दुहाई देती रहूंगी, बिलखती रहूंगी, घृणा करूंगी। दिन-रात ध्यान करूंगी के मैं मानव कैसे बनूं? क्षण क्षण यह भूलूंगी के मैं मानव ही तो हूं! हर बार सुखद राहों का चयन स्वयं करूंगी! पर लेखिका हूं! लिखना तो मुझको दुर्गम राहों पर ही है। औरों को सीख मिलेगी, अपराध किसे कहते हैं और स्वयं यहां प्रेमी के विरह की गीत लिखूंगी। Read the caption for full poem पूर्ण जीवन, केवल मानवता की दुहाई देती रहूंगी, बिलखती रहूंगी, घृणा करूंगी। दिन-रात ध्यान करूंगी के मैं मानव कैसे बनूं? क्षण क्षण यह भूलूंगी के मैं मानव ही तो हूं!