सजा दामन में नायाब सपने निकले अजनबी शहर के अनजान रास्ते न रहने को घर, सोने को छत ऐसी घनघोर दुख की छटा किस को बताते, तिल तिल समूल नष्ट स्वतः हो जाता,आ जाते है फिर जीवन फासले, करते दिनरात परिश्रम देह तपाते संघर्ष की आग में अपनो के वास्ते, निशदिन नवचेतना जागृत होती,नैन स्वप्निल से सुनहरे से सपनों को रचते, मन वेदना बिलखती हैं अपनों की याद में,बीती रैन हुई पहर कोई न सुनते, एकांत सूनापन से ये जीवन हो जाता है, न कोई दुख सुख का हाल जाने, कर दिया लाचार कुदरत ने भी छीन सारे काम धंधे, जग भी अब मारे ताने। ♥️ Challenge-756 #collabwithकोराकाग़ज़ ♥️ इस पोस्ट को हाईलाइट करना न भूलें :) ♥️ रचना लिखने के बाद इस पोस्ट पर Done काॅमेंट करें। ♥️ अन्य नियम एवं निर्देशों के लिए पिन पोस्ट 📌 पढ़ें।