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सदियों से चली आ रही रूढ़िवादी प्रथा को तोडना है ! स

सदियों से चली आ रही रूढ़िवादी प्रथा को तोडना है ! स्त्रीयो के हक़ के लिए लड़ना हैं, स्त्री एक ऐसी जाति जिसे मर्यादाओं, गरिमाओं में जकड़ कर रखा जाता हैं स्त्री को घर की इज्जत के नाम पर अधिकारों से वांछित रखा जाता हैं क्यों एक पीहर मे बेटी को इज्जत की तोहीम देकर, उसे आगे बढ़ने से रोका जाता हैं वही दूसरी ओर सुसराल, क्यों बहु को आज़ादी देने से घबराता हैं? 
समाज में एक स्त्री की पहचान उसके पिता, भाई, पति और पुत्र से ही क्यों की जाती हैं, जो स्त्री एक पुरुष को समाज में लाती हैं, चलना, खेलना, और समाज में हालातों का सामना करना सिखाती हैं वही स्त्री समाज में अपनी पहचान खो देती हैं. एक पुरुष की पहचान स्त्री से होनी चाहिए, लेकिन ये तो एक पुरुष प्रधान समाज हैं. यहाँ स्त्री सिर्फ वस्तु......... 
एक पुरुष जो एक स्त्री से प्रेम करता हैं वही पुरुष, उसे समाज के आगे अपनाने से हिचकिचाता हैं उसे कलंक, कुल्छणी और चरित्रहीन कह कर बुलाता हैं. 
हाँ, ये पुरुष प्रधान समाज ही तो हैं जो विवाह के लिए स्त्री को ढूंढता हैं और दूसरी ओर अपनी अजन्मी बेटी को कोख में मरवाता हैं. हाँ ये पुरुष प्रधान समाज समाज ही तो हैं जो अपनी माँ, बहन को घर की लाज की नज़र तो, पराई स्त्री को भोग की नज़र से देखता हैं. 
क्यों एक स्त्री को देह मात्र समझा जाता हैं? 
क्यों एक पुरुष, एक स्त्री को अपनी निजी संपत्ति समझ उसका शोषण करता हैं? ये कैसा पुरुष प्रधान समाज हैं जहाँ एक तरफ़ दुर्गा माँ को देवी के रूप में पूजा जाता हैं वही दूसरी ओर एक स्त्री के साथ बलात्कार,भ्रूणहत्या, घरेलुहिंसा उत्पीड़न किया जाता हैं. 
आख़िर क्यों इस समाज में एक स्त्री को कौमार्य के आधार पर पवित्र ओर अपवित्र की श्रेणी में रखा जाता हैं? क्यों एक स्त्री लोगो की इच्छानुसार चले तो संस्कारी कहलाती हैं, अगर वही स्त्री अपनी स्वतंत्रता ओर अधिकारों के लिए आवाज उठाये तो चरित्रहीन कहलाने लगती हैं? ये कैसा समाज हैं जहाँ एक स्त्री को अपने अधिकारों के लिए लड़ना पड़ता हैं !
जूही... #NojotoQuote
सदियों से चली आ रही रूढ़िवादी प्रथा को तोडना है ! स्त्रीयो के हक़ के लिए लड़ना हैं, स्त्री एक ऐसी जाति जिसे मर्यादाओं, गरिमाओं में जकड़ कर रखा जाता हैं स्त्री को घर की इज्जत के नाम पर अधिकारों से वांछित रखा जाता हैं क्यों एक पीहर मे बेटी को इज्जत की तोहीम देकर, उसे आगे बढ़ने से रोका जाता हैं वही दूसरी ओर सुसराल, क्यों बहु को आज़ादी देने से घबराता हैं? 
समाज में एक स्त्री की पहचान उसके पिता, भाई, पति और पुत्र से ही क्यों की जाती हैं, जो स्त्री एक पुरुष को समाज में लाती हैं, चलना, खेलना, और समाज में हालातों का सामना करना सिखाती हैं वही स्त्री समाज में अपनी पहचान खो देती हैं. एक पुरुष की पहचान स्त्री से होनी चाहिए, लेकिन ये तो एक पुरुष प्रधान समाज हैं. यहाँ स्त्री सिर्फ वस्तु......... 
एक पुरुष जो एक स्त्री से प्रेम करता हैं वही पुरुष, उसे समाज के आगे अपनाने से हिचकिचाता हैं उसे कलंक, कुल्छणी और चरित्रहीन कह कर बुलाता हैं. 
हाँ, ये पुरुष प्रधान समाज ही तो हैं जो विवाह के लिए स्त्री को ढूंढता हैं और दूसरी ओर अपनी अजन्मी बेटी को कोख में मरवाता हैं. हाँ ये पुरुष प्रधान समाज समाज ही तो हैं जो अपनी माँ, बहन को घर की लाज की नज़र तो, पराई स्त्री को भोग की नज़र से देखता हैं. 
क्यों एक स्त्री को देह मात्र समझा जाता हैं? 
क्यों एक पुरुष, एक स्त्री को अपनी निजी संपत्ति समझ उसका शोषण करता हैं? ये कैसा पुरुष प्रधान समाज हैं जहाँ एक तरफ़ दुर्गा माँ को देवी के रूप में पूजा जाता हैं वही दूसरी ओर एक स्त्री के साथ बलात्कार,भ्रूणहत्या, घरेलुहिंसा उत्पीड़न किया जाता हैं. 
आख़िर क्यों इस समाज में एक स्त्री को कौमार्य के आधार पर पवित्र ओर अपवित्र की श्रेणी में रखा जाता हैं? क्यों एक स्त्री लोगो की इच्छानुसार चले तो संस्कारी कहलाती हैं, अगर वही स्त्री अपनी स्वतंत्रता ओर अधिकारों के लिए आवाज उठाये तो चरित्रहीन कहलाने लगती हैं? ये कैसा समाज हैं जहाँ एक स्त्री को अपने अधिकारों के लिए लड़ना पड़ता हैं !
जूही... #NojotoQuote
juhisaini8304

Juhi Saini

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