ख़्वाहिशे बैठे थे आज ख्वाबों में कहीं कुछ ख़्वाहिशों का जिक्र हुवा था रात में उतरी थी आसमां से चाँदनी और जिन्दगी का आगाज़ हुवा था कुछ मग़रूर ख़्वाहिशे (घमण्डी) आरिज़े-गुल चाहती है (गुलाब के रंग जैसे गाल) पर जिन्दगी कहाँ कुछ ऐसा देती है दरिया से ज्यादा क़यामत लाती है (प्रलय) 'इलाही ' से पूछकर तो देख ये ज़मी कितना खाती है कितना लंबा है ख़्वाहिशों का सफर हाल-ए-ज़बूँ होने को है (बुरी हालात) बारिश की बूँदें सुख चुके शज़र पर गिरने दो ज़रा जिंदा रहेगा तो दुवा देगा ये सब मिट जायेगा एक दिन ढलेगी रात जब शबनम में कभी (ओस) और एहसास जिन्दा रह जायें तो जिन्दगी है मुर्दे जिस्म पर मौसम कहाँ ठहरते है बादलों को सोना है पहाड़ों में कहीं खुली जम़ी पर तो भेदे जाते है बिस्तर से उठती है कितनी ख़्वाहिशे रोज़ और बेमतलब हो जाती है हिक्कत में कहीं ।। मैं ख्वाबों में घुल मिल जाता हूँ कुछ इस कदर के बेहिसाब सा हो जाता हूँ और नींद से उठकर आँखे फिर सोने की दुवा करती है ख्व़ाहिशों का समुद्र बहुत गहरा है डूब जाता हूँ अक्सर ।। ©Anurag Kumar #ख़्वाहिशे #Wishes #creativeminds