कुछ सुलझी, कुछ उलझी सी, ज़िन्दगी चल रही हैं, के, मसरूफ़ भी नहीं, और नाकारा भी नहीं हम... उलझनों का जोड़, इस क़दर हैं, कि बेताबी बेहिसाब हैं, जो कभी छूटे इससे, सुकू का कोई पल, गुज़ारे हम... कितना नाखुश हैं दिल, क्या, बयां करें अब, होता ग़र बस में कुछ, जाने क्या क्या बदल आते हम... वक़्त और सब्र, से बड़ा सूरमा ना हो सकता कोई, एक को मना उस्ताद, तो दूसरे के यार हुए हैं हम... कितना कुछ, खिलाफ़ दिखता हैं हमें, हमारे, फ़िर डटे खड़े हैं, कि, तासिर से थोड़े ज़िद्दी हैं हम... ©Bhushan Rao...✍️ #ज़िद्दी_ज़िन्दगी #NojotoWriter #alone Dhyaan mira Sudha Tripathi rahil priya gour vks siyag sandip rohilla