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यह कैसी चाले हैं समझ नहीं आ रही जिधर देखो उधर ही स

यह कैसी चाले हैं
समझ नहीं आ रही
जिधर देखो उधर ही
सन्नाटे की कशमकश है
मन आने वाले वक्त की 
अटकलें लगा रहा है
न जाने दिमाग किस 
दुविधा का समाधान 
ढूंढ रहा है और
इन्हीं के बीच सांसे 
बेवजह चल रही है
धड़कनों का ना कोई 
ओर न कोई छोर है
बस सीमा से परे 
धड़के जा रही ।

©–Varsha Shukla
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