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समझ ना सकेंगे तेरे चश्म मेरी ये शफकत कयोंकि इन्हे

समझ ना सकेंगे तेरे चश्म मेरी ये शफकत 
कयोंकि इन्हें आदत जो है हर किसी से मुलाकात करने की.

पढ़ ना सकेगे तेरे अधर मेरी ये शफकत 
कयोंकि इन्हें आदत जो है हर किसी से बात करने की 

कोशिश तो कर शायद पहुचा सके तेरे कर्ण मेरी शकफत का ये नगमा तेरे मर्म तक...
या तेरे दिल को भी आदत है यूँ हर किसी से लगाव करने की

©alfaaz_mere
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