"माना कि वक्त में घुमाव हैं, उतार हैं तो कई चढ़ाव हैं। अल्फाज़ भी, ख़ामोशी भी, स्थिरता और सही सुझाव हैं। चंचल मन सा, कोमल भी, सत्य जैसा विपरीत बहाव हैं। वक्त सा भी है, कहाॅं शिक्षक? वक्त पर किसका रहा प्रभाव है? "कृपया अनुशीर्षक में पढ़ें" 🌸🌸🌸🌸02/15🌸🌸🌸🌸🌸 "उम्र के शुरुवात होने से लेकर आज तक, वक्त बहता ही रहा है नदी सा।" तब मेरी कहानियों के किरदार मेरे नायक नायिकाएं मेरे सोचने के तरीके को हर बार बदलते आए, मैं किसी के लिए भी एक दम कांच सा मन लेकर सामने न आई जो की असल में कोई आता ही नहीं, बस कुछ लोग अपने व्यवहार और बोल चाल में दो चीज़ रखते आए हैं, एक वह मन जो केवल हम जानते हैं और एक वह मन जो सबको दिखाना है। मुझसे ये दोमुहा व्यवहार किसी के साथ नहीं हो सका शायद यही वजह रही कि मैं बड़बोली केवल मेरे जानने वालों के साथ रही। इसी कारण आज जब मैं सच के लिए दो शब्द कहती हूॅं तो सबको चुभता है। शायद मेरी चुप्पी ही ठीक है, यदि मैं चुप रही और कुछ ज़िंदगियाॅं बिगड़ गई, या मैंने सोचा की वक्त सारे घाव पर एक दम उचित मरहम लगाएगा तो क्या यह सोचना गलत है? या सर्वथा उचित। यदि मैं सोचूँ कि वक्त सब ठीक करेगा तो हम कर्म छोड़ दें???