यूँ ही हफ़्ते गुजर गए, न कोई ख़त न कोई पैगाम आया, मुझे आया न आया, पर क्या तुम्हें भी मेरा ख्याल न आया, जितनी अजनबी कल थी, उतनी ही अजनबी फिर आज हो क्या, सच बताना मुझसे नाराज हो क्या ? कि दुनिया की आपा-धापी में, जरूरतों की इस आंधी में, उलझ कर किसी रोज जो कभी, मैं ना तुमको याद कर पाऊं, कि दिल-ए-बेकरार की आरज़ू, यूँ ही जो कभी कह न पाऊं, छोड़ दोगी तुम भी यूँ ही, दामन क्या मेरा , या बिखर जाए जो पल में, ऐसा अनबुना सा कोई साज़ हो क्या, सच बताना मुझसे नाराज हो क्या ? एक पल का खयाल जो, कई पलों को जोड़ जाए, कई वर्षों का साथ जो, एक पल में ही छोड़ जाए, भीड़ में यहां कभी जो, हाथ मेरा छूट जाए, साथ न छोड़ने का वादा, गलती से भी जो टूट जाए, रोक लेने को मुझे, सुन भी न सकूँ वो आवाज़ हो क्या, सच बताना , तुम मुझसे नाराज़ हो क्या ? नाराज हो क्या #नाराज_हो_क्या