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यूँ ही हफ़्ते गुजर गए, न कोई ख़त न कोई पैगाम आया, मु

यूँ ही हफ़्ते गुजर गए,
न कोई ख़त न कोई पैगाम आया,
मुझे आया न आया,
पर क्या तुम्हें भी मेरा ख्याल न आया,
जितनी अजनबी कल थी,
उतनी ही अजनबी फिर आज हो क्या,
सच बताना मुझसे नाराज हो क्या ?

कि दुनिया की आपा-धापी में,
जरूरतों की इस आंधी में,
उलझ कर किसी रोज जो कभी,
मैं ना तुमको याद कर पाऊं,
कि दिल-ए-बेकरार की आरज़ू,
यूँ ही जो कभी कह न पाऊं,
छोड़ दोगी तुम भी यूँ ही,
दामन क्या मेरा ,
या बिखर जाए जो पल में,
ऐसा अनबुना सा कोई साज़ हो क्या,
सच बताना मुझसे नाराज हो क्या ?

एक पल का खयाल जो,
कई पलों को जोड़ जाए,
कई वर्षों का साथ जो,
एक पल में ही छोड़ जाए,
भीड़ में यहां कभी जो,
हाथ मेरा छूट जाए,
साथ न छोड़ने का वादा,
गलती से भी जो टूट जाए,
रोक लेने को मुझे,
सुन भी न सकूँ वो आवाज़ हो क्या,
सच बताना ,
तुम मुझसे नाराज़ हो क्या ? नाराज हो क्या 
#नाराज_हो_क्या
यूँ ही हफ़्ते गुजर गए,
न कोई ख़त न कोई पैगाम आया,
मुझे आया न आया,
पर क्या तुम्हें भी मेरा ख्याल न आया,
जितनी अजनबी कल थी,
उतनी ही अजनबी फिर आज हो क्या,
सच बताना मुझसे नाराज हो क्या ?

कि दुनिया की आपा-धापी में,
जरूरतों की इस आंधी में,
उलझ कर किसी रोज जो कभी,
मैं ना तुमको याद कर पाऊं,
कि दिल-ए-बेकरार की आरज़ू,
यूँ ही जो कभी कह न पाऊं,
छोड़ दोगी तुम भी यूँ ही,
दामन क्या मेरा ,
या बिखर जाए जो पल में,
ऐसा अनबुना सा कोई साज़ हो क्या,
सच बताना मुझसे नाराज हो क्या ?

एक पल का खयाल जो,
कई पलों को जोड़ जाए,
कई वर्षों का साथ जो,
एक पल में ही छोड़ जाए,
भीड़ में यहां कभी जो,
हाथ मेरा छूट जाए,
साथ न छोड़ने का वादा,
गलती से भी जो टूट जाए,
रोक लेने को मुझे,
सुन भी न सकूँ वो आवाज़ हो क्या,
सच बताना ,
तुम मुझसे नाराज़ हो क्या ? नाराज हो क्या 
#नाराज_हो_क्या