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कविता------- "नारी पर ये कैसा कानून" कितनी घिनौ

कविता-------

 "नारी पर ये कैसा कानून"

कितनी घिनौनी सोच से भरी है ये समाज,
दबी है मर्दों के कानूनों में औरत कल भी और आज।

बालविवाह, सतीप्रथा, स्तनकर और न जाने कितने भद्दे कानून।
कितनी घिनौनी है पौरुषता का खून।।

वह खून जो औरत से पनपा और उसी पर नियम लगाया।
मात्र नाम गुलामी की, वैश्या यही समाज बनाया।।

घृड़ित पौरुषता क्यों मुख नहीं खोलता?
क्यों अपने घिनौने सोच पर कुछ नहीं बोलता?

कहाँ हैं वो अंधे पुरुष जिन्होंने ये नियम बनाये?
क्यों अपनी गंदे विचारों पर पाबन्दी नहीं लगाए?

वैश्या का क्या परिभाषा है?
क्यों माहवारी और जाति पर अंकुश का पाषा है?

क्यों मंदिर में औरत को जाने का अधिकार नहीं?
क्यों मस्जिद में औरत का आना स्वीकार नहीं?

किस धर्मगुरु ने बनाये हैं ये कानून?
क्यों उनके निति में अधमरी हो औरतें रही हैं भुन?
 
सीता के पवित्रता पे किस राम की मर्यादा है?
क्या सभी धर्मग्रन्थ इन्हीं शूद्र सोच का प्यादा है?

वह क्यों घूँघट में खुदको डाल कर बैठी है?
क्यों उसके ही पांव घुंघरू से ऐठी है?

क्यों उसके ही मांगों में सिंदूर लगा है?
क्यों उसके ही हाथों में चूड़ी पड़ा है?

अरे पहले से जन्म के तेरे हैं भार उठाये।
किस समाज ने एक तरफा नियम बनाये?

औरत पर क्यों समाज का भार मढ़ा है?
कानून के पन्नों में सिर्फ क्यों पुरुष खड़ा है?

औरत क्यों बेचारी की अधिकारी है?
अरे नियम तानकर बैठा हमपर ये कौन भिखारी है?

@nuराdha🕊️ #womens_day
#sheinspireus
#love🇮🇳❤️
कविता-------

 "नारी पर ये कैसा कानून"

कितनी घिनौनी सोच से भरी है ये समाज,
दबी है मर्दों के कानूनों में औरत कल भी और आज।

बालविवाह, सतीप्रथा, स्तनकर और न जाने कितने भद्दे कानून।
कितनी घिनौनी है पौरुषता का खून।।

वह खून जो औरत से पनपा और उसी पर नियम लगाया।
मात्र नाम गुलामी की, वैश्या यही समाज बनाया।।

घृड़ित पौरुषता क्यों मुख नहीं खोलता?
क्यों अपने घिनौने सोच पर कुछ नहीं बोलता?

कहाँ हैं वो अंधे पुरुष जिन्होंने ये नियम बनाये?
क्यों अपनी गंदे विचारों पर पाबन्दी नहीं लगाए?

वैश्या का क्या परिभाषा है?
क्यों माहवारी और जाति पर अंकुश का पाषा है?

क्यों मंदिर में औरत को जाने का अधिकार नहीं?
क्यों मस्जिद में औरत का आना स्वीकार नहीं?

किस धर्मगुरु ने बनाये हैं ये कानून?
क्यों उनके निति में अधमरी हो औरतें रही हैं भुन?
 
सीता के पवित्रता पे किस राम की मर्यादा है?
क्या सभी धर्मग्रन्थ इन्हीं शूद्र सोच का प्यादा है?

वह क्यों घूँघट में खुदको डाल कर बैठी है?
क्यों उसके ही पांव घुंघरू से ऐठी है?

क्यों उसके ही मांगों में सिंदूर लगा है?
क्यों उसके ही हाथों में चूड़ी पड़ा है?

अरे पहले से जन्म के तेरे हैं भार उठाये।
किस समाज ने एक तरफा नियम बनाये?

औरत पर क्यों समाज का भार मढ़ा है?
कानून के पन्नों में सिर्फ क्यों पुरुष खड़ा है?

औरत क्यों बेचारी की अधिकारी है?
अरे नियम तानकर बैठा हमपर ये कौन भिखारी है?

@nuराdha🕊️ #womens_day
#sheinspireus
#love🇮🇳❤️