#OpenPoetry " भारत भूमि " हे भारत की पावन भूमि मुझे तुझसे प्रेम अपार , ऐसा लगता मानो प्रकृति ने किया हो सोलह श्रृंगार , मस्तक पर हिमगिरि शोभित मुकुट समान चमकता है , चरणों को रत्नाकर धोकर पायल समान दमकता है , खाड़ी और अरब सागर जैसे कंगन हाथों में खनकते हैं , गंगा जमुना रेवा क्षिप्रा जैसी नदियाँ केशों से लहकते हैं , काश्मीर की घाटी मस्तक पर बिंदिया जैसी लगती है , अपनी भारत माता सोने की चिड़िया जैसी लगती है ।। ©®आरती अक्षय गोस्वामी #OpenPoetry #भारत_भूमि #आरती_अक्षय_गोस्वामी