जनहित की रामायण - 33 आम आदमी की आमदनी, रोज़ घटती जा रही, बेरोजगारों की बढोतरी, करोड़ों में नज़र आ रही ! अज़ीमप्रेमजी यूनिवर्सिटी की, खोज के हैं आंकडे, प्रवक्ता कहत, अधिक बुरा होने से, सत्ता बचा रही !! महंगाई दिन रात, बढ़ती ही जा रही, सरकार रोजगार तो, दे ही न पा रही ! रोज़मर्रा पे बढ़े 'कर' से, जन की टूटी कमर, कोर्पोरेट्स आयकर, घटा के सत्ता इतरा रही !! जनकल्याण संविधान को, हम ओढ़े बिछाये है, नीतियों में जनकल्याण, विलुप्तप्राय: पाये हैं ! कोर्पोरेट्स के भरे पेट को, तो खिलाया जा रहा, मध्यम-निम्न वर्ग मदद स्वरुप, कर्ज ही पाये हैं !! चुनावी जीत हार में भी, पग पग पर पैंतरेबाजी, विपक्षी दलों में भी जारी है, आपसी दगाबाज़ी ! पत्रकारों ने तो मां सरस्वती को, खून के आंसू रुलाया, न्याय की देवी ने, आँखो पे बंधी पट्टी ही फाड़ डाली !! जनदुर्दशा की रामकहानी, थमती ही नहीं है, जनता अब भला बुरा भी, समझती नहीं है ! गुमराही के दलदल में, धंसती चली जा रही, कल कैसे गुजरेगा, इसका पता तक उसे नहीं है !! हे राम.. - आवेश हिन्दुस्तानी 03.07.2021 ©Ashok Mangal #JanhitKiRamayan #AaveshVaani #unemployment #Prices