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नदी है हिचकिचाहट की,नदी को पार कीजे ना! शरण में आप

नदी है हिचकिचाहट की,नदी को पार कीजे ना!
शरण में आपकी हूँ मैं, मेरा उद्धार कीजे ना!
नहीं कुछ भी मेरा मुझमें सिवा निर्लिप्त इस मन के
निवेदित आपको है मन,इसे स्वीकार कीजे ना!

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©Ghumnam Gautam
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