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वो दिन याद आते हैं...... जब भव की चिन्त रीतियों स

वो दिन याद आते हैं......

जब भव की चिन्त रीतियों से पूर्णतः अचिन्त हो,
हम अपनी भाव-गति का हिया से त्यजन करते! 

लगता जैसे काल चक्र ठहराव का स्वभाव ले, 
हमारी हंसदेहता की संवेदन में तसल्ली भरते!

अगाध वार्ताएं कभी यदृच्छया, निःशब्दता में बदल,
हम दोनों अपनी कमनीयता को निहारने लगते! 

संतप्तता की सर्व अंतर्वेदनाओ से उन्मुक्त होकर, 
हम लगाव की निमग्नता में हर साँस भर-भर जगते!

©Viraaj Sisodiya
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