White Bhagvadgita 4.20 त्यक्त्वा कर्मफलासङ्गं नित्यतृप्तो निराश्रयः। कर्मण्यभिप्रवृत्तोऽपि नैव किञ्चित्करोति सः। Having surrendered all claim to the results of his actions, always contented and independent, in reality he does nothing, even though he is apparently acting. जो कर्म और फल की आसक्ति का त्याग करके आश्रय से रहित और सदा तृप्त है, वह कर्मों में अच्छी तरह लगा हुआ भी वास्तव में कुछ भी नहीं करता। ©KhaultiSyahi #good_evening_images #bhagwatgeeta #Sanskrit #Quote #khaultisyahi #Life_experience #Truth #Reality #think #Love